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।।वो तूफ़ान।।

Roshan Bodhisatwa Maharana

21st October, 2020

जानी पहचानी सड़कें अब अनजान नज़र आती है,
उम्मीद भरी महफ़िल भी अब सुनसान सा धुन गाती है।
न मंज़र है कहीं, न दिखता कोई प्यासा है।
अनजान चेहरों में न दिखती कोई आशा है।।

नदी का बहाव भी समंदर के झटके सा लगे,
रोज़ के मेहनत में हर पल कुछ कमी सा लगे,
रंग तक़दीर के हर लम्हें बदलती रहती है।
आवाज़ कानों में अकसर, यही गूंजकर कहती है।।

आसमान के काले बादल ऐसे हुंकारें देता हैं,
कि चमकते सूरज को अपनी, आगोश में छुपा दे..
मूसलाधार बारिश से, बादल में दरार ला दे..
यूं ही बाढ़ में फंसे मंज़िल को और डुबा देता है।।
आसमान के काले बादल ऐसे हुंकारें देता है..

आइना दिखा देती हंसी की वजह बिन पूछे,
साया अब छूटता चला पैरों से बिन सोचे।।
आँसू भी पलकों से गुमशुदा रहती है।
हंसी भी अब ख़ामोश-घबराई रहती है!!

ज़िंदगी में यूं ही सन्नाटा शोर मचाता है,
तूफ़ान हक़ीक़त से परे सपनों में भी डराता है।।

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